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स्वच्छ भारत और हम-२ ( तारे जमीं पर)

अपनेराम की डायरी
अपनेराम की डायरी
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सुबह सवेरे मोहल्ले की तमाम भाभियों को सजे धजे देख कर अपने राम को बहुत आश्चर्य हुआ की भैय्या दशहरा, दिवाली और तो और छठ भी बीत गया, फिर ये आज क्या नया त्यौहार आन पड़ा की फजीरे फजीरे भाभियां तमाम, गहने वहने से लदी फदी, मार रंग रोगन करा कर सड़कों पर उतर आईं हैं| अब गौर करने लायक तो कोई नहीं है पर फिर भी गौर से देखा तो पता लगा कि सबकी सब हाथों में डंडों वाली झाड़ू उठाए कचरा पेटी के पास पल्लू से नाक दबाये खड़ीं हैं| अब ये क्या माजरा है राम जाने, क्या कोई थीम पार्टी है जिसमें झाड़ू पर सवार हो कर चुडैलों की तरह जाना है, अपने राम तो समझ नहीं पा रहे| अच्छा पार्टी में जाना है तो जाओ लेकिन ३० मिनट से वहीँ खड़े हो कर जाने किसका इन्तजार कर रही हैं ये चुडैलें, ओह माफ़ कीजियेगा, भाभियां| खैर… जब एक आध घंटा बीत गया तो अपनेराम का सबर जवाब देने लगा और जिज्ञासा की खुजली जोर मारने लगी| लाख हिम्मत करने पर भी जब अपने राम भाभियों से पूछने से हिचकिचाते वापस अपने घर में घुसने लगे तो उनकी काम वाली सुमित्रा देवी अचानक प्रकट हुईं| अपनेराम तुरत ही सुमित्रा देवी से भाभियों के झुण्ड के बारे में जानकारियां हासिल करने लगे| “कुछ नहीं साहब, सब भाभी लोग आज सड़क की सफाई करने वाली हैं| वो अपने परधान मंत्री जी ने टीवी पर लगाई थी न झाड़ू वैसे ही|” सुमित्रा बोली| “ सडक सफाई! अरे तो करो ना एक घंटे से बस झाड़ू उठाए खड़ीं हैं ये सब तो|” अपने राम ने कहा| “ साहब, वो पेपर वाले और फोटू खींचने वाले नहीं आये अब तक इसलिए खड़ीं हैं|” सुमित्रा ने सफाई दी|ओहो तो ये बात है असली, वही कहूँ अपने घर में तिनका भी ना उठाने वालीं ये सब आज गली मुह्हले की सफाई कैसे करने लगीं? पिछले बीस सालों से अपने राम जब अपने घर के आस पास साफ सफाई करते थे तो यही झुण्ड उन्हें बड़ी हिकारत से देखता था, भला हो श्री मोदी जी का जिन्होंने आज इस झुण्ड को भी झाड़ू पकडवा ही दी|
अपने राम सोचने लगे की भैय्या मोदी जी ने तो अक्टूबर की २ तारीख को स्वच्छ भारत का नारा दिया था और उसी दिन झाड़ू उठा ली थी फिर पूरे एक महीने बाद इन भाभी जानों को झाड़ू की याद कैसे आई? अब तक क्यूँ नहीं इस सफाई अभियान में शामिल हुईं , आज अचानक ही कैसे याद आई झाड़ू की? अपने राम दिमाग पर जोर दे रहे थे कारण ढूँढने के लिए पर बात उनके समझ में आई नहीं| चलो हमें बात समझ आये ना आये, मोहल्ले वालों को अकल तो आई , ये सोचते हुए अपनेराम घर में घुसे और टीवी पर समाचारों की चैनेल लगा कर बैठ गए| कुछ देर दिल्ली का हाल, काले धन, मोदी जी का नया नारा इत्यादि पर बहस करते करते एक समाचार ने अपने राम को चौंका दिया|
“महानायक श्री अमिताभ बच्चन साहब ने मुंबई की सड़कों पर झाड़ू लगाई|’’
तो ये है भैय्या, हमारी भाभियों के सडक पर आ जाने की असल वजह| कुछ नास्तिक लोग बेकार ही साबित करने में लगे रहते हैं की हमारा जीवन सितारों की चाल पर निर्भर नहीं है|देख लीजिये, सचिन तेंदुलकर, सलमान खान, आमिर खान, अमिताभ बच्चन जैसे अंतरिक्ष में विचरने वाले तारे सितारे जब जमीन पर आने लगे तो हमारे मुह्हले की भाभियों को भी सडक पर आना ही पड़ा| हुआ न हमारा जीवन सितारों की चाल से प्रभावित? बात करते हैं…………….|

बाहर अचानक शोरगुल होने लगा तो अपनेराम लपक कर खिड़की पर आये तो देखते हैं की सड़क के एक ही हिस्से में करीब १५/२० भाभियां झाड़ू लगा रहीं हैं | अजब नज़ारा देखने को मिल रहा था अपनेराम को, अलग अलग डिजाईन की भाभियां नई नवेली झाडुएँ हाथ में ले कर पोज़ पर पोज़ दिए जा रहीं थीं और ३/४ फोटूग्राफर तडातड उनके फोटू खींच रहे थे| अपने राम बचपन में पढ़ी रूसी लोक कथाओं की चुड़ैल बुड्ढी ड्द्धो बगा यगा की याद करते हुए खिड़की से हट गए| ५/ १० मिनिटों में सारा शोरगुल ख़तम हो गया और गली में मातमी सन्नाटा पसर गया| अपने राम वापस खिड़की पर आये तो देखते हैं की गली और सड़क पर जो कचरा पड़ा था वो वैसे ही पड़ा है पर सारी भाभियां और उनकी झाड़ू गायब हैं| फोटू और अखबार वाले भी नदारद हैं| ये क्या हुआ साहब, स्वच्छ भारत अभियान समाप्त!

अपनेराम असमंजस में पड़े खिड़की से बाहर झांकते रहे पर उनकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था, ये वाकई कोई अभियान है या बस एक दिखावा जो हर बड़ा और छोटा नागरिक अपनी अपनी औकात से कर रहा है| बड़े बड़ों को टीवी पर जगह मिल रही है और छुटभैय्ये अपने स्थानीय अख़बारों में छप रहे हैं|
कचरा और भारत वैसे ही जैसे थे|

अपने छोटे से दिमाग पर जोर डालते अपने राम के समझ में एक बात आई की भैय्या हम भारतीय, नारों से और अभियानों से सुधरने वाले नहीं, हमसे कुछ करवाना है तो हमें मजबूर करो तब ही हम करेंगे| अपनेराम को फिर रुसी लोक कथा में पढ़ा हुआ “डंडा प्यारा कष्ट निवारण हारा” याद आने लगा| उस लोक कथा में हर किसी गलती पर, हर जुल्म पर एक जादुई डंडा लोगों पर बरसने लगता था और लोग मजबूरन सही काम करने लगते थे| वही डंडा हमें चाहिए, हर एक भारतीय केपीछे (पिछवाड़े) अगर ये डंडा पड़ जाए तो हर एक सुधरने लगेगा, ३०० साल की गुलामी और ६७ साल की अर्थहीन आज़ादी ने हमें यही तो सिखाया है की अपने आप देश के हित में कुछ नहीं करने का, अगर मजबूरी में कर गए तो कोई नहीं| श्री मोदी जी ने स्वच्छता अभियान का प्रतीक गाँधी जी का चश्मा रखा है यहीं गलती हो गई भैय्या, गाँधी जी ने तो कहा था की बुरा मत देखो, बस हम भारतीय गन्दगी को अनदेखा कर रहे हैं, स्वच्छता अभियान का सही प्रतीक गाँधी जी की लाठी होनी चाहिए थी, वैसे भी मजबूरी का नाम महात्मा गाँधी कहने का चलन देश में बरसों से है ही|

खैर, अब जो हो गया वो हो गया, अपने राम ने सोचा और झाड़ू उठा कर निकल पड़े सड़क की गन्दगी साफ़ करने| भाभियों ने जो कचरा सडक के कोने में छितरा दिया था उसे उठा कर कचरा पेटी में डालने के लिए पहुंचे तो देखते हैं की महीनों का कचरा उस हफ्ते की पेटी में पड़ा है| सड़क का ये कचरा उसमें डालते ही कचरापेटी में से एक कुतिया हडबडा कर बाहर निकल भागी और भागते भागते कचरा पेटी का आधे से अधिक कचरा सडक पर फैला गई|अपने राम ने अपना माथा पीट लिया , करने गए थे स्वच्छता और देखिये क्या हो गया| कचरा पेटी से गिरा हुआ कचरा उठाते अपनेराम सोच रहे थे की वाकई देशवासी अपना परिसर साफ़ कर लेंगे, सडक साफ कर लेंगे पर जमा किया हुआ कचरा कहाँ डालेंगें, इन बजबजाती लबालब भरी कचरा पेटियों में, जिन्हें यहाँ रख कर प्रशासन की याददाश्त खो जाती है| मोदी जी ने स्वच्छ भारत का नारा लगा कर झाड़ू तो लगा दी, पर कचरा प्रबंधन पर कुछ नहीं कहा| इसलिए जगह जगह झाड़ू लग रही है पर जमा किये हुए कचरे का कोई ठोस प्रबंध नहीं हो रहा, हर कोई मोदी जी की ओर देख रहा है की शायद कचरा प्रबंधन पर भी कोई नया कार्यक्रम मोदी जी लायेंगे और तभी हम सब की और प्रशासन की नींद टूटेगी| कचरे से विदेशों में कहीं बिजली बन रही है तो कहीं उसे सड़क बनाने में इस्तमाल किया जा रहा है, ऐसा ही कोई उपयोग मोदी जी शायद अब ,देश को बताएँगे और इन कचरा पेटियों का भाग्य खुल जायेगा|

सारा गिरा हुआ कचरा उठा कर पेटी को व्यवस्थित करके अपनेराम घर की ओर जैसे ही निकले, देखते हैं की सड़क पर १०/१२ भैंसों का झुण्ड जुगाली करते हुए आ रहा है| एक झुण्ड गया और दूसरा हाज़िर, अपनेराम ने सोचा| ये गाय भैंसे सड़कों पर करती क्या हैं, ये आज तक अपनेराम को नहीं समझ आया| माना की देश की सड़कें गड्ढों से भरी है पर अभी तक सडको पर घांस नहीं उगी है, कि चरने चली आती हैं, अच्छा इनको हांकने के लिए कोई ग्वाला भी साथ नहीं होता, जब मर्जी जहाँ मर्जी ये झुण्ड जुगाली करते घुस आता है| अपने राम मना रहे थे की ये झुण्ड आराम से सड़क से गुजर जाये पर आज तो भैय्या, स्वच्छ भारत अभियान का समापन होना ही था| उन १०/१२ भैंसों ने शायद ज्यादा ही चारा खा लिया था, और जो हम इंसानों को ज्यादा रेशेदार खाना खाने से होता है, वही इन भैंसों का हाल हुआ| सड़क के बीचों बीच गोबर से चित्रकारी करते हुए, झुण्ड गली से गुजर गया| अच्छी खासी साफ़ सडक अब गोबर से पटी पड़ी थी| अपनेराम आसमान में इश्वर को खोजते घर को चल पड़े| अभी घर पहुँच ही रहे थे कि देखा, पड़ोस वाली भाभी जी अपनी चार पहिया गाड़ी से उन तमाम फोटूग्राफरों को पहुँचाने निकलीं हैं| अपनेराम उन्हें गोबर से बचा कर चलने के लिए नसीहत देने ही वाले थे कि उनकी गाडी सड़क पर पड़े गोबर में घुसी और फच फचाता गोबर अपनेराम के खुले मुंह में जा घुसा| अब तो हद हो गई, स्वच्छ भारत, स्वच्छ भारत, का गुणगान करने वाले और तन मन धन से उस अभियान को पिछले २० सालों से चलाने वाले अपनेराम गोबर से सने खड़े थे और स्वच्छता का महज दिखावा करने वाली भाभियाँ स्थानीय अख़बारों और टीवी पत्रिकाओं में छप रहीं थीं|
गोबर से सने अपनेराम बीच सड़क खड़े खड़े सोच रहे थे, “भाड़ में जाये स्वछता अभियान, हम तो सालों से कर ही रहे हैं स्वच्छता अपने आस पास की, और करते रहेंगे, हमें किसी विशेष अभियान की गरज नहीं| इस देश में स्वच्छता अभियान की नहीं अनुशासन अभियान की जरूरत है जी, अनुशासित करने के लिए दंड का प्रावधान होना चाहिए और दंड के लिए डंडा जरूरी है|” स्वच्छ भारत अभियान को कोसते, अपने राम चल पड़े गुसलखाने की ओर स्वच्छ होने के लिए|

– अवी घाणेकर

४ नवम्बर २०१४

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