अपनेराम की डायरी
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कहीं पढ़ा था कि, मन अरण्य है,
हाँ शायद सही है , मन अरण्य है
मानव के कुत्सित, घृणित विचारों का ये एक अभयारण्य है||
|| पशु जैसे पाते हैं अभय, मानव निर्मित उद्यानों में,
वैसे ही पातें हैं अभय ये विचार, मनुष्य के मन उपवन में,
वर्जित है अभय पाए पशुओं की हत्या, और इन विचारों की भी ||
|| कहीं पढ़ा था की विचार अजरामर हैं, हाँ शायद सही है, विचार अजर- अमर हैं,
तभी तो कितने दावानल, जला गए, तन को, मन को और मनु को,
पर नहीं झुलसा सके इन अभय प्राप्त विचारों को||
– अवी घाणेकर
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