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अपनेराम राम का हसीन सपना २

अपनेराम की डायरी
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सपने देखने की लत लग जाती है क्या साहब? अभी कल ही तो मैंने परसों रात के सपने के बारे में आपको बताया था, और कल रात फिर मुझे एक सपना आया| अब तो साहब रातों की नींद ख़राब हो रही है इन सपनों से| खैर सपने को आप से साझा तो करना ही पड़ेगा वरना दिल की बात दिल में ही रह जाएगी| कल रात मैंने देखा …..

उन सभी आदरणीय, प्रातः वन्दनीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का आवाहन स्वीकार कर मैंने ठान लिया की जो भी हो अब इस समाज प्रबोधन के कार्य को सफल करना ही है| अंग्रेजी में एक कहावत है .. “चैरिटी बिगिन्स एट होम” इसी का ध्यान रख कर मैंने अपने घर से ही इसकी शुरुवात करने की ठानी| सबसे पहले ख्याल आया की मुझे अपने पिताजी से इस बारे में बात करनी चाहिए और मैं बढ़ गया उनके कमरे की तरफ|

पचास वर्ष के करीब पहुँच गया हूँ पर आज भी पिताजी के सामने जाने में मेरी …..{(शब्द जो मन में आया वो लिखना ठीक नहीं, क्यूंकि शायद इसे नई  पीढ़ी भी पढ़े) ये बात और है की आज की पीढ़ी वो शब्द अक्सर ही प्रयोग करती है}….. आत्मा कांपती है| पिताजी अपने टेलीविज़न पर उनके पसंदीदा खिलाडी का मैच देख रहे थे| कुछ देर इधर उधर की बातें कर मैं मुद्दे पर आया| “ देखो मेरा दिमाग मत ख़राब करो, क्या उलजलूल की बातें मन में आती हैं इस उम्र में ये सब ठीक नहीं|” उन्होंने कहा| मैं भी कमर कस के आया था तो मुद्दा छोड़ने को तैयार नहीं था| “ क्या बकवास है, मुझे परेशान मत करो वैसे ही मेरी अन्जियो प्लास्टी हो चुकी है, रोज दस बारा गोलियां खा रहा हूँ की दिल सलामत रहे और तुम कहते हो की दिल पर काई जमी है| अरे नालायक ! बाप से ऐसी बातें करते शर्म नहीं आती|” उन्होंने डांट लगाई| अब मेरी हिम्मत जवाब दे गई और उनके पीछे न पड़ने का विचार कर मैं अपने कमरे में आ गया|

समाज सुधार की खुजली जोर मार रही थी और सामने देखा तो मेरी प्रिय पत्नी अपना आला और एप्रन ले कर कहीं जाने की तयारी में है| मेरी पत्नी एक ख्यातनाम डॉक्टर हैं और हमारा प्रेम विवाह है| “आज रविवार को भी अस्पताल जा रही हो|” मैंने पूछा| “ आज कॉल डे है, तुम्हे बताया तो था, तुम समझते ही नहीं|” उसने बड़ी हिकारत भरी नज़रों से मुझे देखते हुए कहा| “मुझे तुम से कुछ आवश्यक बात करनी है|” मैंने कहा| “ जो भी कहना है बाद में कहना अभी मुझे समय नहीं है|” उसका जवाब था| फिर भी बड़ी शिद्दत से मैंने उसे अपने प्यार का हवाला देते हुए रोक लिया और मुद्दा उसके सामने रखा| “अवी, डॉ. प्रधान  हमारे अस्पताल के बड़े अच्छे मनोरोग विशेषज्ञ हैं, मैं कल ही  उनका अपॉइंटमेंट ले लेती हूँ| तुम्हें इलाज की जरूरत है|” उसने सहानुभूति दर्शाते हुए कहा| “ तुम समझ नहीं रही हो, परसों के सपने ने मेरे दिल पर जमी काई हटा दी और मुझे एक नया प्रकाश दिखने लगा है| मैं चाहता हूँ की दूसरों से पहले अपने लोगों के दिलों को ही साफ़ कर लूं|” मैंने ज़ोर दे कर कहा| अब तो उसका पारा सातवें आसमान पर था| “ पति देव! आपका दिल तो साफ़ हो गया पर दिमाग ख़राब हो गया है, और वैसे भी मेरा दिल मेरे पास नहीं है|” ये सुनना था की मेरे होश उड़ गए, मेरी पत्नी का दिल उसके पास नहीं है| मेरे चहरे के भाव पढ़ कर उसे मुझ पर कुछ दया आई और उसने बड़े लाड से कहा “ हमारा दिल आपके पास है” और अपनी कार में बैठ कर वो अस्पताल चली गई|

दो मोर्चों पर विफल हो कर भी मैंने हार नहीं मानी और अपनी छोटी बेटी के कमरे की ओर बढ़ गया| बेटी से इधर उधर की बातें करने की बजाय मैंने सीधे मुद्दे पर हाथ डाला| “तुम्हारा दिल कहाँ है?” मैंने पूछा| बिटिया रानी पढाई कर रहीं थीं, इस साल बारहवीं की परीक्षा है| “बाबा ! आपकी तबियत तो ठीक है न, अभी कल ही तो इस विषय पर अपनी बात हुई है और आपने ही कहा न की अब पढाई में दिल लगाओ| तो और कहाँ होगा मेरा दिल|” मुझे कुछ घूरते हुए उसने कहा| मैंने उसे कल रात के सपने के बारे में बताया और मेरे महान कार्य में सहयोग करने की गुहार लगाईं| “ अभी कुछ साफ- वाफ करने का वक्त नहीं है,  जो पढ़ा है  वो भी अगर इस सफाई में निकल गया तो फिर आप ही दस बातें सुनाएंगे मुझे|” उसका उत्तर मुझे अनुत्तरित कर गया और मैं निराश सा  बैठक के कमरे में चला आया|

मेज पर पड़ीं दो चार पत्रिकाओं को उलटते पलटते भी मेरे दिमाग में समाज सुधार का कीड़ा कुलबुला रहा था की तभी फ़ोन की घंटी बजने लगी| मेरी बड़ी बेटी ,जो मनोविज्ञान जैसे कठिन विषय में कुछ रिसर्च वगैरह कर रही है,मुंबई से बोल रही थी| “ बाबा तुम से ये उम्मीद नहीं थी, आई को तो समय नहीं है पर तुमने तो हफ्ते में एक बार मुझे फ़ोन करना चाहिए|” जैसे मैं तो खाली ही बैठा रहता हूँ| उसे क्या मालूम की कितनी बड़ी मुहीम मैंने हाथ में ले रखी है| क़रीब  पांच मिनिटों तक वो अनवरत मुझे डपटती रही और फिर उसने बड़े स्नेह से पूछा| “ और क्या चल रहा है|” अंधे को और क्या चाहिए …. मैं शुरू हो गया अपने सपने की हकीकत बयां करने पर| मेरी बात ख़त्म होने के काफी देर बाद उसने एक सधे हुए मनोवैज्ञानिक के लहजे में कहा| “ बाबा ! सपना देखना बुरी बात नहीं है पर सपने को सच मान कर पागलपन की हद तक उसका पीछा करना मनोरोग का लक्षण है| सपने हमें क्यूँ आते है ये जानते हो, हमारे अंतःकरण में सुप्त इच्छाएं हमें सपने के रूप में दिखाई पड़ती हैं| खैर मैं दिवाली की छुट्टियों में घर आउंगी तब तुम से बात करती हूँ, अभी मुझे लैब जाना है इसलिए फ़ोन रखती हूँ| और हाँ, आई को कहना मुझे उससे बात करनी है|” ये कह कर उसने फ़ोन बंद कर दिया| अब तो हद हो गई मेरा परिवार ही मेरा साथ देने की बजाय मुझे पागल समझ रहा है| घर की मुर्गी दाल बराबर ये मुहावरा याद करते हुए मैं घर के बाहर निकल पड़ा|

कई मित्रों, जान-पहचान वालों के यहाँ से मायूसी हाथ ले कर और सारा रविवार व्यर्थ गवां कर जब मैं वापस घर पहुंचा तो पूरी तरह से टूट चुका था| कितनी उम्मीद और उत्साह से मैंने अपने सपने को सच करना चाहा पर हुआ वही जो अक्सर होता है , सपना कभी सच नहीं होता| अचानक टीवी की जोरदार आवाज से आँख खुली और सुनाई दिया की दौंडिया खेडा की खुदाई में टनों सोने की जगह जंग लगे लोहे के सिवाय कुछ नहीं मिला| ऐसा ही तो कुछ मेरे सपने के साथ भी हुआ है, दिलों पर जमी काई साफ़ करने में तो शायद कम मेहनत लगती पर जब दिलों पर जंग लगी हो तो सफाई असंभव है|

अब तो एक ही रास्ता बचा है की अब मैं उन स्वतंत्रता सेनानियों के सपने में जाऊं और उनसे माफ़ी मांग लूं अपनी पराजय पर|

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